कुछ सन्देशे

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Tuesday 1 November 2016

गूगल जीवन

गूगल जीवन
गूगल साथी
बे रंग हो गए
सपने सारे
कैसा दिया कैसी बाती
मन की खुजली
बहुत रुलाती
तन का पीपल
रोज सूखता
रिश्ते सब हो गए बरसाती
उडती  तितली
बहता पछुआ 
कौन नज़ारे
कैसा बादल
रोज सुबेरे तलहटी में
गुजती है हल्दीघाटी
भरा कटोरा खाली दिल है
गाँधी बने की मांझी
इस चक्कर में हो गए माटी .

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