कुछ सन्देशे

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Thursday 17 November 2016

काली चिड़ियां

काली चिड़ियां
घूम रही है
कितनो का हक
चुग रही है
चिड़ियां  होकर भी
चिडियों का
जड़ समूल
 ही लील रही है
सोने की चिड़ियां
आयेगी
अब
तो
आश उठ
रही है .

Wednesday 16 November 2016

टुच्चा कवि

लाचार कवि
सोच रहा
पहले क्या उठाऊं
बन्दुक
कि कलम
कि कुदाल
तभी
सरहद ने कायर
साहित्य ने टुच्चा कवि
अध्यात्म ने
अपात्र गृहस्थ कह दिया
एक बार कलियुग ने
दौड़ाया था
धरती रूपी गाय को
कुछ वैसा ही मंजर है .......

Thursday 3 November 2016

एक सूचना

सियासत नहीं आयेगी
मिलने एल ओ सी से....
उसे  फुरसत कहाँ
दरबार की
कलाबाजियों से
खड़े धान ,पीले हाथ
,व्याकुल मन ,खामोश गलियां,
बेबश चेहरे ,पसीने का खून,
सिसकते आँगन,
लथपथ किलकारी,
अधजली अगरबत्तियाँ ,
कुरान के खुले पन्ने,
माँ की लालच में
ठिठके अन्न दाता
धन्य पहरुए,
सांसों  को खोजने आए खबरिये
चुकी बेचैन बादलों ने
जानना चाहा था सच
अत:अब सूचना समाप्त हुई

Wednesday 2 November 2016

कुछ काँटे

हर फूल खोज रहा है
खुश्बू
बाजार में,
कुछ काँटों को और
ज्यादे तीखापन
चाहियें . 

गाँव का हाल

गाँव ..गाँव नहीं
अब गोल बन गए है,
ऐसा चढ़ा सत्ता का
जहर कि राजनेति
अब हर चेहरे का
खोल बन गये है ,
मुअनी-जियनी,खेलल-गावल
उठल-बईठल
सबका अब अपना
भूगोल बन गये है .

Tuesday 1 November 2016

गूगल जीवन

गूगल जीवन
गूगल साथी
बे रंग हो गए
सपने सारे
कैसा दिया कैसी बाती
मन की खुजली
बहुत रुलाती
तन का पीपल
रोज सूखता
रिश्ते सब हो गए बरसाती
उडती  तितली
बहता पछुआ 
कौन नज़ारे
कैसा बादल
रोज सुबेरे तलहटी में
गुजती है हल्दीघाटी
भरा कटोरा खाली दिल है
गाँधी बने की मांझी
इस चक्कर में हो गए माटी .