लाचार कवि
सोच रहा
पहले क्या उठाऊं
बन्दुक
कि कलम
कि कुदाल
तभी
सरहद ने कायर
साहित्य ने टुच्चा कवि
अध्यात्म ने
अपात्र गृहस्थ कह दिया
एक बार कलियुग ने
दौड़ाया था
धरती रूपी गाय को
कुछ वैसा ही मंजर है .......
सोच रहा
पहले क्या उठाऊं
बन्दुक
कि कलम
कि कुदाल
तभी
सरहद ने कायर
साहित्य ने टुच्चा कवि
अध्यात्म ने
अपात्र गृहस्थ कह दिया
एक बार कलियुग ने
दौड़ाया था
धरती रूपी गाय को
कुछ वैसा ही मंजर है .......
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