कुछ सन्देशे

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Friday 9 December 2016

बेखबर




1-
पत्थर–पत्थर 
दर्द भरा
नदियाँ- नदियाँ 
प्यासी
बादल- बादल   
घबराये है
मंजिल पर उदासी
जल्दी- जल्दी में 
यह सब
हो रहा बारहोंमासी



2-
छुट्टे सांड घुमते है
साहित्य और स्वर्ग में
रौदते है दाम्पत्य
भरे पेडों को
उन्हें खबर नहीं
कैसे कमल खिला था
अधजले पानी में,
वे तो दिलजले है
दूँढ देते चाँद
में भी धब्बा,
उधर बेखबर
चाँद को
रोटी समझकर
फावड़ा लिए
सो गया वह
कड़कड़ाती रातो में .   

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